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सरकार ने कपास पर आयात शुल्क छूट 31 दिसंबर तक बढ़ाई — अमेरिकी 50% टैरिफ लागू होने के बीच रणनीतिक कदम

भारत सरकार ने कपास पर लगने वाला लगभग 11% आयात शुल्क (जिसमें 5% बेसिक कस्टम ड्यूटी, 5% कृषि अवसंरचना एवं विकास शुल्क, और 10% सोशल वेलफेयर सरचार्ज शामिल हैं) को 31 दिसंबर 2025 तक के लिए पूरी तरह से माफ (exempt) कर दिया है। यह निर्णय अमेरिका द्वारा भारतीय वस्त्र एवं अन्य वस्तुओं पर 50% तक के भारी टैरिफ लगाने के बाद सक्रिय असर को कम करने के उद्देश्य से लिया गया है।

इस कदम के पीछे की रणनीति और उद्देश्य
- उद्योग को तत्काल राहत
अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव से जूझ रहे वस्त्र निर्यातकों को राहत देने के लिए यह छूट देना जरूरी था। इससे उन्हें सस्ते और बेहतर कपास का आयात करने में मदद मिलेगी और उत्पादन लागत में कमी आएगी। - लंबी अवधि के आदेश की सुविधा
प्रारंभ में यह छूट 19 अगस्त से 30 सितंबर तक ही थी, जो उद्योग समूहों के अनुसार काफी संकीर्ण अवधि थी। अब इसे दिसंबर तक बढ़ाने से कंपनियों को बड़े पैमाने पर आदेश देने और आपूर्ति श्रृंखला को सुचारू बनाए रखने में सहायता मिलेगी। - आपूर्ति श्रृंखला की मजबूती
यह नीति वस्त्र आपूर्ति श्रृंखला—जैसे यार्न, फैब्रिक, गारमेंट्स—में कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद करेगी और त्योहारी सीज़न के दौरान उत्पादन क्षमता को बढ़ावा देगी। - फ़सल अवधि और किसानों पर असर
हालांकि यह निर्णय उद्योग को लाभ पहुंचा रहा है, किसान संघों ने इसे कपास उत्पादकों के प्रति हानिकारक बताया है। किसानों का तर्क है कि जब अक्टूबर से मार्च तक फसल बाजार में आएगी, तब अंतर्राष्ट्रीय सस्ता आयात घरेलू कीमतों को नीचे गिरा सकता है।
इस नीति का व्यापक प्रभाव
पक्ष | प्रभाव और विवरण |
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वस्त्र उद्योग (मिल्स, निर्माता) | सूजन raw-material लागत में कमी, निर्यात प्रतिस्पर्धा में सुधार |
निर्यातक (RMG) | अमेरिकी बाजार में मौजूदा टैरिफ चुनौतियों से मुकाबला, लॉन्ग-टर्म योजना में आसानी |
कपास किसान | घरेलू कीमतों में गिरावट की आशंका, वित्तीय संकट और कर्जबढ़ोतरी जोखिम |
सरकार | व्यापार विरोधाभास को संतुलन में रखना: उद्योग-मुक्ति बनाम किसान-रक्षा |
निष्कर्ष
भारत सरकार का यह कदम—50% अमेरिकी टैरिफ के बीच—उद्योग और निर्यातकों को फलमुक्त और प्रभावशाली समर्थन देने के उद्देश्य से उठाया गया है। हालांकि यह नीति किसानों के लिए चिंताजनक हो सकती है, सरकार द्वारा इसका उद्देश्य “संतुलित दृष्टिकोण” बनाए रखना है—उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता और किसान हित दोनों को ध्यान में रखकर