“हर नागरिक बने राष्ट्रनिर्माता” — संघ प्रमुख मोहन भागवत का सशक्त संदेश🇮🇳

राष्ट्र स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में एक महत्वपूर्ण आयोजन के दौरान देशवासियों से सीधा आह्वान किया —
“देश को मजबूत बनाना केवल सरकार या किसी संगठन का कार्य नहीं, बल्कि हर नागरिक की साझा जिम्मेदारी है।”
उनका यह संदेश केवल देशभक्ति का नारा नहीं, बल्कि एक राष्ट्र निर्माण का सूत्र था — जहाँ हर व्यक्ति स्वयं को भारत की शक्ति का अंग माने।
1. हर नागरिक राष्ट्र का आधार स्तंभ
भागवत ने कहा कि अगर देश को आत्मनिर्भर, सुरक्षित और सम्मानित बनाना है, तो हर व्यक्ति को अपना कर्तव्य निभाना होगा।
“देश को बेहतर बनाना हमारे अपने हित में है। जब देश अच्छा करेगा, तब हम सभी सुरक्षित और सम्मानित रहेंगे।”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब आम नागरिक जिम्मेदारी समझता है, तो शासन व्यवस्था स्वतः सुदृढ़ होती है। सरकारें जनता के स्तर पर ही मजबूत होती हैं, और जनता की सजगता ही राष्ट्र की रीढ़ होती है।
2. नागपुर की भूमि से उठी चेतना की पुकार
नागपुर, जहाँ RSS की स्थापना हुई थी, भागवत के शब्दों में “सेवा, अनुशासन और समर्पण की भूमि” है।
उन्होंने कहा कि भारत के हर कोने में ऐसी नागपुर जैसी चेतना जागनी चाहिए — जहाँ समाज स्वेच्छा से राष्ट्र के लिए कार्य करे, बिना किसी स्वार्थ के।
यह केवल संगठन की नहीं, बल्कि जन-जन की जिम्मेदारी है कि वह अपने क्षेत्र, समाज, मोहल्ले और परिवार से राष्ट्र के उत्थान का प्रयास करे।
3. एकता, अनुशासन और सामाजिक समरसता का संदेश
भागवत ने कहा कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है, लेकिन यह विविधता तभी फलती है जब उसमें एकता हो।
उन्होंने नागरिकों से आह्वान किया कि वे धर्म, भाषा, क्षेत्र और जाति से ऊपर उठकर एक साझा भारतीय पहचान को अपनाएं।
“हम सब एक ही संस्कृति, एक ही भूमि, और एक ही राष्ट्र के अंग हैं। हमारी भिन्नताएँ हमें बाँटने नहीं, बल्कि जोड़ने के लिए हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि समाज में सम्मान, संवेदनशीलता और अनुशासन जैसी मूल्य प्रणाली को मजबूत किए बिना कोई राष्ट्र टिक नहीं सकता।
4. जिम्मेदार नागरिकता — राष्ट्र की रीढ़
भागवत के अनुसार, एक राष्ट्र की वास्तविक ताकत उसकी सेना या संसाधनों में नहीं, बल्कि उसके नागरिकों की नैतिक चेतना और जिम्मेदारी में होती है।
जब व्यक्ति अपने कर्तव्यों को समझता है, तो न केवल वह स्वयं को उन्नत करता है, बल्कि पूरे समाज को सशक्त करता है।
उन्होंने चेताया कि यदि नागरिक निष्क्रिय रहेंगे या केवल आलोचना करेंगे, तो समाज कमजोर होगा, और देश का विकास रुक जाएगा।
इसलिए हर व्यक्ति को अपने स्तर पर सकारात्मक योगदान देना चाहिए — चाहे वह शिक्षा हो, स्वच्छता हो, या सामाजिक सुधार।
5. क्या करें हम – व्यावहारिक दृष्टिकोण
मोहन भागवत के संदेश को धरातल पर उतारने के लिए नागरिकों को चाहिए कि वे:
- अपने आस-पास स्वच्छता और व्यवस्था बनाए रखें।
- समाज में सद्भाव और सहयोग की भावना को बढ़ाएँ।
- कानून का पालन करें और सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करें।
- पर्यावरण, शिक्षा और सामाजिक कल्याण में सक्रिय भागीदारी निभाएँ।
- अपने बच्चों और युवाओं में राष्ट्रप्रेम, अनुशासन और सेवा की भावना का विकास करें।
इन छोटे-छोटे कदमों से बड़ा परिवर्तन संभव है। राष्ट्र का निर्माण किसी एक नायक का नहीं, हम सबके सामूहिक प्रयासों का परिणाम होता है।
6. निष्कर्ष — हर हाथ बने भारत की शक्ति
मोहन भागवत का यह संदेश आज के भारत के लिए गहरा अर्थ रखता है।
यह केवल राजनीतिक या वैचारिक विचार नहीं, बल्कि एक नैतिक चेतना का आह्वान है — कि अगर भारत को विश्वगुरु बनाना है, तो हर नागरिक को अपने भीतर एक कर्तव्यनिष्ठ नागरिक को जागृत करना होगा।
“देश हमसे है, और हम देश से हैं — जब हम जागेंगे, तब भारत जागेगा।”
आज आवश्यकता है कि हर व्यक्ति यह प्रण ले:
मैं अपने देश को मजबूत बनाऊँगा — अपने कर्म से, अपने योगदान से। 🇮🇳




