इसरो जून में अंतिम आरएलवी लैंडिंग प्रयोग के लिए तैयार
इसरो जून में अंतिम आरएलवी लैंडिंग प्रयोग के लिए तैयार
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने महत्वाकांक्षी पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहन (RLV) कार्यक्रम के तहत इस जून में अंतिम लैंडिंग प्रयोग करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। यह कार्यक्रम अंतरिक्ष अभियानों की लागत को कम करने और अंतरिक्ष में आसानी से पहुंच बनाने के उद्देश्य से विकसित किया जा रहा है।
क्या है पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहन (RLV)?
RLV एक ऐसा प्रक्षेपण वाहन है जिसे एक से अधिक बार उपयोग में लाया जा सकता है। पारंपरिक रॉकेट, जो एक बार उपयोग के बाद नष्ट हो जाते हैं, की तुलना में RLV का उपयोग बार-बार किया जा सकता है। इससे न केवल लागत में कमी आती है, बल्कि यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी अधिक अनुकूल है।
पिछले प्रयोग और उपलब्धियां
इसरो ने पहले भी कई चरणों में RLV का परीक्षण किया है। पहले चरण में, 2016 में, इसरो ने RLV-TD (Re-usable Launch Vehicle-Technology Demonstrator) का सफल परीक्षण किया था। इस प्रयोग में RLV को उच्च ऊंचाई तक ले जाया गया और फिर इसे नियंत्रित तरीके से नीचे लाया गया। यह प्रयोग सफल रहा और इसरो को प्रोत्साहन मिला कि वह इस दिशा में आगे बढ़े।
जून का अंतिम लैंडिंग प्रयोग
इस जून में होने वाला अंतिम लैंडिंग प्रयोग RLV कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसरो के वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग के लिए व्यापक तैयारी की है। यह परीक्षण यह निर्धारित करेगा कि RLV को वास्तविक मिशनों में उपयोग करने के लिए कितना उपयुक्त है। इस परीक्षण के तहत RLV को एक नियंत्रित और सटीक लैंडिंग करनी होगी, जो इसकी वास्तविक उपयोगिता को प्रमाणित करेगा।
इसरो की भविष्य की योजनाएं
यदि यह अंतिम लैंडिंग प्रयोग सफल रहता है, तो इसरो आने वाले वर्षों में पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहनों का उपयोग करके अधिक किफायती और प्रभावी अंतरिक्ष मिशनों को अंजाम देगा। इसके अलावा, इसरो का उद्देश्य है कि वह अन्य देशों के साथ भी इस तकनीक को साझा करे, जिससे वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष अभियानों की लागत को कम किया जा सके।
निष्कर्ष
इसरो का पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहन (RLV) कार्यक्रम भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण कदम है। जून में होने वाला अंतिम लैंडिंग प्रयोग इस दिशा में एक निर्णायक मील का पत्थर साबित होगा। यदि यह प्रयोग सफल होता है, तो यह न केवल इसरो के लिए बल्कि पूरी अंतरिक्ष अनुसंधान समुदाय के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी। इससे अंतरिक्ष मिशनों की लागत में कमी आएगी और भारत को वैश्विक अंतरिक्ष मानचित्र पर और अधिक मजबूती मिलेगी।