भारतीय बैंक जलवायु परिवर्तन को अपने प्रणालीगत जोखिम के सबसे बड़े स्रोत के रूप में देखते हैं
भारतीय बैंक जलवायु परिवर्तन को अपने प्रणालीगत जोखिम के सबसे बड़े स्रोत के रूप में देखते हैं
वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती बन चुका है, जो सिर्फ पर्यावरण ही नहीं बल्कि आर्थिक और वित्तीय प्रणाली को भी प्रभावित कर रहा है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र भी इस तथ्य को पहचान रहा है और जलवायु परिवर्तन को अपने प्रणालीगत जोखिम के सबसे बड़े स्रोत के रूप में देख रहा है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप मौसम के अनियमित पैटर्न, बाढ़, सूखा और अन्य प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं। ये घटनाएँ कृषि, इंफ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा और जल संसाधनों पर भारी प्रभाव डालती हैं, जिससे बैंकों के कर्जदारों की ऋण चुकाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। विशेष रूप से, भारतीय कृषि क्षेत्र जो मुख्य रूप से मानसूनी वर्षा पर निर्भर है, जलवायु परिवर्तन से गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है। यह स्थिति बैंकों के लिए एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) के स्तर को बढ़ा सकती है।
नियामक दबाव और अपेक्षाएं
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भी जलवायु जोखिमों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है। आरबीआई ने बैंकों को निर्देश दिए हैं कि वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मूल्यांकन करें और उसे अपनी जोखिम प्रबंधन रणनीतियों में शामिल करें। इसके अतिरिक्त, बैंकों को अपने पोर्टफोलियो का मूल्यांकन करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि वे सतत वित्तपोषण के मानकों का पालन करें।
हरित वित्तपोषण की दिशा में कदम
जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए भारतीय बैंक हरित वित्तपोषण को बढ़ावा दे रहे हैं। हरित बांड जारी करना, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश और पर्यावरण के अनुकूल व्यवसायों को ऋण प्रदान करना ऐसे कुछ उपाय हैं जिनके माध्यम से बैंक अपनी भूमिका निभा रहे हैं। इस दिशा में, भारतीय स्टेट बैंक, एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक जैसे प्रमुख बैंक हरित वित्तपोषण के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
चुनौतियां और अवसर
हालांकि, जलवायु परिवर्तन के जोखिमों से निपटना आसान नहीं है। भारतीय बैंकों को पर्याप्त डेटा, जागरूकता और विशेषज्ञता की आवश्यकता है ताकि वे जलवायु जोखिमों का सही मूल्यांकन कर सकें। इसके लिए बैंकिंग सेक्टर को सरकार और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करना होगा।
दूसरी ओर, जलवायु परिवर्तन के खतरे को अवसर में बदलने की भी क्षमता है। हरित वित्तपोषण से न केवल पर्यावरण को लाभ होगा, बल्कि यह बैंकिंग क्षेत्र के लिए नए व्यापारिक अवसर भी पैदा करेगा। इससे बैंकों की छवि में सुधार होगा और वे वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की दिशा में योगदान दे सकेंगे।
निष्कर्ष
भारतीय बैंक जलवायु परिवर्तन को अपने प्रणालीगत जोखिम के सबसे बड़े स्रोत के रूप में पहचान रहे हैं और इसके प्रभावों से निपटने के लिए सक्रिय कदम उठा रहे हैं। यह आवश्यक है कि बैंकिंग क्षेत्र सतत वित्तपोषण की दिशा में और अधिक प्रयास करे, ताकि आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों का सामना किया जा सके और एक स्थायी और समृद्ध भविष्य की दिशा में अग्रसर हुआ जा सके।