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“जुलाई 2025 में बैंकों का गैर-खाद्य ऋण वृद्धि घटकर 9.9% पर: रिजर्व बैंक का आंकड़ा”

📊 परिचय:

भारत के बैंकिंग क्षेत्र के लिए जुलाई 2025 में एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेत सामने आया है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, गैर-खाद्य ऋण (Non-Food Credit) में वृद्धि 9.9% तक घट गई है, जो पिछले साल की तुलना में कम है। यह आंकड़ा देश की आर्थिक स्थिति और बैंकिंग क्षेत्र की वित्तीय स्थिरता को समझने में मदद करता है। गैर-खाद्य ऋण में धीमी वृद्धि बैंकिंग क्षेत्र की भविष्यवाणी के विपरीत एक संकेत हो सकती है, क्योंकि सामान्यतः ऋण वृद्धि को आर्थिक विकास का एक प्रमुख संकेतक माना जाता है।


💡 गैर-खाद्य ऋण क्या होता है?

गैर-खाद्य ऋण उन ऋणों को कहा जाता है जो खाद्य वस्त्रों, कृषि, या खाद्य सुरक्षा से संबंधित नहीं होते। इसमें व्यापार, उद्योग, मकान निर्माण और अन्य बुनियादी सुविधाओं से जुड़ी वित्तीय सेवाएँ आती हैं। इस ऋण का उद्देश्य व्यापारिक विकास, उद्योग विस्तार, और नौकरियों की सृजन में सहारा प्रदान करना है।


📉 गैर-खाद्य ऋण वृद्धि में गिरावट के कारण:

9.9% की धीमी वृद्धि को देखकर यह स्पष्ट है कि बैंकों में ऋणों की मांग में कमी आई है। इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण हो सकते हैं:

  1. उच्च ब्याज दरें:
    RBI द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी के कारण, उधार लेने की लागत बढ़ गई है, जिससे उधारकर्ताओं के लिए ऋण लेना महंगा हो गया है। खासकर व्यक्तिगत ऋण, घर ऋण और कारोबारी ऋण की मांग में कमी आई है।
  2. आर्थिक अस्थिरता:
    वैश्विक आर्थिक अस्थिरता, महंगाई, और आंतरिक आर्थिक चुनौतियाँ जैसे महंगाई और नौकरियों की कमी के कारण व्यवसाय और उपभोक्ता ऋण लेने से हिचकिचा रहे हैं। लोग और कंपनियाँ इन परिस्थितियों में अपना खर्चा कम करने के लिए कर्ज लेने से बच रहे हैं।
  3. कम निवेश और विकास गतिविधियाँ:
    जब निवेश और विकास गतिविधियाँ धीमी होती हैं, तो बैंकों को नए ऋण जारी करने में भी उतनी रुचि नहीं रहती। इससे कुल ऋण वृद्धि पर असर पड़ता है।
  4. ऋण के वसूली मुद्दे:
    बैंकों को पहले से दिए गए ऋणों की वसूली में कठिनाई हो रही है, जिसके चलते वे नए ऋणों की पेशकश में सावधानी बरत रहे हैं। बैड लोन (Non-Performing Assets, NPA) की बढ़ती समस्या भी इस मामले में एक बड़ी बाधा है।

🔍 क्षेत्र विशेष में ऋण वृद्धि:

जुलाई 2025 में, गैर-खाद्य ऋण वृद्धि में विभिन्न क्षेत्रों का योगदान अलग-अलग था:

  1. व्यापारिक ऋण:
    व्यापारिक ऋण की वृद्धि अपेक्षाकृत धीमी रही, क्योंकि अधिकांश छोटे और मंझले व्यापार ऋण लेने से कतराए हैं। व्यवसायों की कम मुनाफा और वित्तीय दबाव ने उन्हें ऋण लेने से हतोत्साहित किया।
  2. मकान ऋण:
    मकान निर्माण और घर के कर्ज में थोड़ी वृद्धि देखी गई, लेकिन यह वृद्धि भी धीमी रही। आवास क्षेत्र में ऋण की मांग केवल स्थानीय निवेशकों तक सीमित रही, क्योंकि नौकरियों में अनिश्चितता और ब्याज दरों का दबाव उपभोक्ताओं को प्रभावित कर रहा है।
  3. उद्योग ऋण:
    उद्योगों को भी ज्यादा ऋण नहीं मिल सका। निर्माण, व्यापार, और उत्पादन क्षेत्रों में धीरे-धीरे ऋण की मांग घट रही है, और उद्योगों के विकास में मंदी आ रही है।

💡 आर्थिक प्रभाव:

बैंकों का गैर-खाद्य ऋण में धीमी वृद्धि का असर कुल आर्थिक विकास पर भी पड़ सकता है:

  1. उधारी पर निर्भर आर्थिक वृद्धि:
    भारत की आर्थिक वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा उधारी और निवेश से आता है। जब ऋण वृद्धि धीमी होती है, तो आर्थिक गतिविधियों और नौकरियों में भी कमज़ोरी आती है, जो आर्थिक वृद्धि को नुकसान पहुंचा सकती है।
  2. नौकरियों की सृजन में रुकावट:
    कम ऋण मांग का मतलब है कि व्यवसायों और नौकरियों के अवसरों में वृद्धि रुक सकती है। अगर बैंकों का ऋण प्रवाह सुस्त रहता है, तो इससे विकास दर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  3. आर्थिक सृजन और निवेश पर प्रभाव:
    जब बैंकों से ऋणों का प्रवाह धीमा होता है, तो निवेश भी कम होता है। इससे दीर्घकालिक आर्थिक विकास में रुकावट आ सकती है, और बिजनेस कंडीशन में बदलाव नहीं आता।

🏦 क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  1. ब्याज दरों में राहत:
    RBI और बैंकों को ब्याज दरों में कमी करने पर विचार करना चाहिए, ताकि ऋण की मांग में सुधार हो सके और व्यापारियों और उपभोक्ताओं को ऋण लेना सस्ता पड़े।
  2. ऋण वसूली प्रक्रिया को मजबूत करना:
    बैड लोन और NPA के मुद्दों को हल करने के लिए ऋण वसूली की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाना चाहिए। इससे बैंकों को नए ऋण जारी करने में विश्वास मिलेगा।
  3. प्रोत्साहन योजनाएँ:
    सरकार और RBI को छोटे और मंझले व्यापारों के लिए ऋण प्रोत्साहन योजनाएँ लानी चाहिए ताकि नौकरियों और व्यापारों में वृद्धि हो सके।

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